Friday, July 24, 2009

मेरी यादें मेरा बसेरा





कॉलेज में मेरी यादें

वो फूलों की डाली वो पत्तों में कांटे
हर मोड़ पर बिछी है मेरी निगाहें
वो ख्वाबों की हकीकत वो यादों का बसेरा
हर गम में है बस तेरा ही तेरा सहारा
वो कॉलेज की गलियों में गुमनाम अंधेरा
हर कदम पर नहीं मिला मुझे साथ तेरा
वो बसों की पायदान पर बना रिश्ता मेरा औऱ तुम्हारा
फिर भी वो सांसों में नहीं दिखा अपनापन तुम्हारा
वो खाली सीढ़ीयों पर बैठ मैने किया लंबा इंतजार
वो तेरी परछाई की आहट ने मुझे किया था बेकरार

वो आखिरी दिनों में एक उम्मीद के सहारे जिया था मैने
न जानें क्यों हरपल तुम्हें ही सोचा था मैंने ।


रजनीश कुमार

Wednesday, July 22, 2009

Palash is a great singer




पलाश सेन के साथ कुछ यादगार पल

इस बेहतरीन सिंगर के साथ कुछ हसीन पल....

Maaeri Lyrics

Teriyaan, meriyaan pul gaya ,Pul gaya haar te jeet
Hey maaye ki karna main jeet nu ,Howey na je meet, howey na je meet
Bindiya lagati thi to kaampti thi palkain meri ,chunniyan sajaa ke woh deti waadein kal ke maaeri Mere haathon main tha uska haath ,Thi chaashni si har uski baat
Maaeri aap hi hansdi, maaeri aap hi rondi ,Maaeri yaad vo yaad vo aaeri
Gallan o kardi, maaeri aakhan naal larhdi ,Maaeri yaad vo yaad vo aaeri

He maaeri
Baarishon main lipatke maa aati thi vo chalke maaeri Deriyaan ho jaye to roti halke halke maaeri Phir se main roun, phir se vo gaye ,Thandi hawaaen ban ke chhaye
Maaeri heeri o gaandi, maaeri gidde o paundi ,Maaeri yaad vo yaad vo aaeri
Jannataa o longdi, maaeri mannatta o mangdi ,Maaeri yaad vo yaad vo aaeri
Ab ka karoon, kaa se kahoon e maaeri ,Ab ka karoon, kaa se kahoon e maaeri
Ho....
Duniya paraaee chhod ke aajaa ,Jhoote saare naate tod ke aajaa
Saun rab di tujhe ik baari aajaa ,Ab ke milein to honge na judaa
Na judaa... Na judaa... ho...
Hoonte to aaye, koi te le aaye ,Maaeri yaad vo yaad vo aaeri
Gallaan o kardi, maaeri akhiyan nal larhdi ,Maaeri yaad vo yaad vo aaeri
Pull gayi mera pyaar maae, bas lage maheene char ,Maaeri yaad vo yaad vo aaeri
Yaad vo aaeri, maaeri yaad vo aaeri ,Maaeri yaad vo yaad vo aaeri
Ab ka karoon, ka se kahoon e maaeri ,Ab ka karoon, ka se kahoon e maaeri.

Wednesday, July 1, 2009

आपका अधिकार

आपका हक
जला दो जला दो उस लौ को जला दो
कभी बुझने न दो उस आग को
जो सीने में लग कर चिंगारी बनी हुई है
उस खामोश रातों को तुम जगा दो
जो वर्षों से सिमटी है अंधेरों की आगोश में।
उन गांवों की लाज तुम ऱख लो
जहां से भारत का सूर्योदय हुआ है।
अपनी जमीं को तुम बचा लो
अपनी खुद्दारी को तुम दिखा दो।
उस खाकी को अपनी अंगुली की ताकत तुम दिखा दो
जो वर्षो बाद तेरे दरवाजे पर दस्तक दी है।
रजनीश कुमार "बाबा"

Thursday, June 18, 2009

मेरी यादें, मेरा बसेरा

तू नहीं तो कुछ भी नहीं.....

गुमनाम रास्तों पर तू चल
तू मुझे बता तू समझ
कि जख्म को तू नकार दे
अंधेरे रास्तों पर तू चला चल
आंधियों को तू पुकार दे
बहती कश्तियों की मझधार में
उड़ती धूल में तू खुद को समेट ले।
जून की दोपहरी में छांव तलाश रहा है तू
भीड़ भरी बाजारों में नंगे पांव चला जा रहा है तू।
ये बता कि, क्या हुई है खता, क्यों है तू खफा।
जुल्म की आगोश में क्यों सिमट रहा है तू
आने वाली आंधियों को क्यों नकार रहा है तू
अपने अतीत को, क्यों खुद याद कर रहा है तू
टूटे आईनों के सामने क्यों आंसू बहा रहा है तू।
रोक ले तू अपनी कल्पनाओं को
आने वाली जिंदगी के बारें में तू सोच
उस भीड़ में उजाले की तरह तुम दिखना
खामोशी बनकर तुम यूं ही मेरी गुमनाम यादों में बसना।


रजनीश कुमार

Thursday, June 11, 2009

।।तू ही बता ! ।।





सपनों कि मंजिल को
तू जा रही है छोड़ के।
तू मुड़ के देख यहां पे
तू किसको जा रही है छोड़ के।
वो वादें वो कसमें
वो इरादें वो बातें
वो तन्हाई भरी रातें
तू याद कर फिर सोच ले
तू जा रही है किसको छोड़ के।
हर गम के बसेरों में तेरा साथ मैने पाया है
आज हू मैं अकेला
जा रही है तू मझे छोड़ के।
यादों की दीवारों पे लिखा है नाम तेरा
वो झांकती झरोखों से तेरी आंखे
किसे भूलूं तू ही बता
किधर को जाऊं तू ही बता।

कातिब & कहानीबाज
रजनीश बाबा मेहता 

Monday, March 30, 2009

सारी बंदिशों को तू तोड़ दे


ऐ मुसाफिर....तोड़ दे बंदिशों को।


चलते हुए मुसाफिर तू बता क्या है तेरी रज़ा

क्यों धूप छांव में चल रहा तू

क्यों अपनी मंजिल को मुश्किलों में डाल रहा है तू।

हर उन बंदिशों को तू तोड़ दे

हर उन रास्तों को तू नाप ले

जिसपर चलने की हरपल तेरी मंशा रही है।

ऐ मुसाफिर तू न सोच मेरे बारें में

जिंदगी एक खेल है जहां सोचना है तूझे अपने बारें में।

हर कदम पर हर मोड़ पर तू अपने आपको बचा

सामने वालों को अपनी कमजोरियों को न तू बता।

सच झूठ के इस दलदल में कभी न धंसना।

उस अन्त के शुरूआत के बारें में तू सोच

जिस शुरूआत के अन्त पर तू खड़ा है।

---------रजनीश कुमार

Friday, March 20, 2009

वो फिर मुझसे बातें की


पुरानी पहचान.....या.......कुछ और.....?

हर रात की तन्हाईयों में जीने वाली
आज वो मुझसे हंस कर बातें की।

फैशन में लिपटी वो छरहरी काया
तिरछी नज़रों से निगाहें भी मिलाई।

वर्षों बाद प्यार भरी बातें सुनकर ऐसा लगा
मानो सारे जहां की खुशियां बिखेर दी उसने।

हाथों की लकीरों में देखा था कभी मैने उसे
एक समय वो रूठ कर गई थी मुझसे।

लेकिन आज मै मना लाया उसे।
कब तक चलेगा ये सिलसिला

य़े देखना है मुझे और उसे।

----रजनीश कुमार

Wednesday, March 18, 2009

अपना एहसास


बस एक नज़्म.......!


एक नज़्म कहना है चाहता हूं मैं आपसे
अपने प्यार का पहला पन्ना सुनाना चाहता हूं आपसे।
दिल की बेरूखी तुम मुझे यूं न दिखाओ
अपने पहलू में बिठाकर अश्कों में देखना चाहता हूं आपको।

मिलनसागर की गीतों के सहारें जो पल गुजारा है मैंने
वो गीतों की मालाएं भेंट करना चाहता हूं आपको।
अपने दामन को बेदाग रखा जमाने से बचा के
उसी दामन की छांव में आसरा चाहता हूं मैं आपसे।

अपने निग़ाहों से तुम मुझे दूर न करना
वरना वो नज़्म भूल जाऊंगा
जो सुनाना चाहता था मैं आपसे।
-----रजनीश कुमार

Tuesday, March 17, 2009

नेता से रिश्ता


नेता से रिश्ता....



हर मोड़ से बड़ा है रास्ता
हर रास्तों से बड़ा है रिश्ता।
हर किसी का नहीं है इससे वास्ता।
राजनीति में नहीं होता कोई रिश्ता
मां बीजेपी में तो बेटा का होता कांग्रेस से नाता
हर घड़ी हर क्षण पलटवार के फिराक में रहता है
तभी तो लोग कहते है तू है सबसे बड़ा नेता।
चुनाव आते ही अभिनेता भी बन जाता है नेता
मंच पर चढ़कर पार्टी के सुर में सुर मिलाता है
मौका आने पर गिरगिट की तरह रंग भी बदल लेता है नेता।
हर पार्टी से जिसका है नाता
वो है हमारी देश की बेचारी जनता


--------रजनीश कुमार

Wednesday, February 11, 2009

अंधेरी रात.....?


अंधेरी रात.....?
देखो रात फिर घिर के आई है घनघोर अंधेरा लाई है....
दिल ने मेरा... आज चांद चुरा के लाया है.....
जुगनूओं की जगमग ने आज मुझे रास्ता दिखाया है...
चमकती पेड़ की टहनियों पर दिख रही है ओस की बूदें..
जैसे रात की मालाएं लिए है...ओस की बूंदें...
सूने आसमान की ओर तकती है...मेरी आंखे..
काली घनघोर रातें घूम रही है ...फैलाएं अपनी बाहें
रात में जगमग तारों की कहानी लिए
हवाओं ने नई दिशाओं में उड़ान भरी है...
इन अंधेरी रातों में रास्ता भी मुड़ना भूल गई..
चमकती बिजलियों की गड़गड़ाहट में
बारिश भी बरसना भूल गई....
खेतों की रखवाली करता वो किसना...
इन अंधेरी रातों में सोना भूल गया...
खेतों की पगडंडियों के बीच सन्नाटे में...
कोई चलना भूल गया.....
---- रजनीश कुमार

Wednesday, January 21, 2009

इंतजार औऱ मैं....!


इंतजार औऱ मैं....!


तेरे आने की जिद लिए बैठा हूं मैं...
तेरे यादों में जीने के लिए बैठा हूं मैं...
सूनी राह को तकती है हरपल मेरी आंखें..
वो धूप की छांवों में तेरा इंतजार लिए बैठा हूं..
अपने आप की तलाश में भटकता हुआ
तेरे करीब आने की फिराक में बैठा हूं मैं....
लोंगो की नसीहतों को नकारता जा रहा हूं ..
तुझे बेपर्दा होकर जाते देख रहा हूं मैं...
काश तू एक नजर भर देख लेती मेरी निगाहों को...
तो यूं न तेरे इंतजार में बैठा होता मैं...
-----रजनीश कुमार

Tuesday, January 20, 2009

भूखा बालक


भूखा बालक


चांदनी चौक के चौराहे पर बेचारे की तरह खड़ा था वो
लिए हाथ में काला पेपर औऱ पैरों में सफेद जूते
जून की चिलचिलाती गर्मी को महसूस कर रहा था वो

भरी भीड़ में बैचैन सा कभी चलता
तो कभी रूक कर सामने वाले को निहारता था वो।
उसके चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था
मानों वर्षों से भूखा है वो.....

हाथ की छोटी छोटी उंगलियों को घुमाते हुए...
खुद को परेशान कर रहा था वो....
जब भी भूख लगती एक आवाज लगाता खुद को..
फिर थोड़ी देर बाद अपने आप को शांत करता नज़र आता वो...
रात घिरने को आई स्ट्रीट लाइट भी जल उठी...
फिर अपने घर की ओऱ जा रहा था वो...
रास्ते में इधर उधर देखता.....
शायद खाने को कुछ पा लेता वो.....
घर पहुंचने को आया फिर भी भूखा था….
चेहरे की परेशानी से भागने की फिराक में था वो...
घर पहुंच कर लालटेन की रोशनी में सोचने लगा था वो....
मां की आवाज आयी बेटा सोने का वक्त हो गया...
नन्ही उंगलियों से रोशनी को धीमा करके....
बिस्तर की तलाश में चल पड़ा था वो।

-----रजनीश कुमार

Sunday, January 4, 2009

है जवाब


है जवाब.............?


उस रात की परछाई आज भी याद है मुझे
मैं अपने नीदों के ख्यालों में खोया था...
वो ओस की बूंदे मेरे चेहरे से टकराती...
फिर अपने में ही गुम होकर वो कहीं खो जाती...

रात के जुगनुओं ने भी रची है एक अलग कहानी...
ओस की बूंदों से प्यास मिटाकर बचा रही है अपनी निशानी...
हर पल नए ख्यालों को बुनता जा रहा हूं मैं...
उस राह की मोड़ पर मुड़ना भूल गया हूं मैं....

इन सुनसान मिट्टी भरी गलियों में अकेला चलता जा रहा हूं मैं...
हर कदम पर सवालों से परेशान होता जा रहा हूं मैं..
क्या अपने रास्तों से भटक गया हूं मैं.... ?
क्या एक चेहरे की याद में दूर तलक आ गया हूं मैं ?
-------रजनीश कुमार

Thursday, January 1, 2009

मेरी जिंदगी, तुम्हारी जिंदगी


मेरी जिंदगी, तुम्हारी जिंदगी



जिंदगी ,जिंदगी ,जिंदगी
हर मोड़ पर खड़ी है एक नई जिंदगी..
खुशियों को हर पल तलाशती है जिंदगी
गमों से पार पाना चाहती है जिंदगी...
अंधेरी सुनसान बंद गलियों में खड़ी है हमारी जिंदगी..
वक्त ने दिखाया है आज एक नया आईना...
अंधेरों से निकलकर आज आजाद हुई है हमारी जिंदगी.....
आंखे उठाकर आसमां की ओर देख रहा हूं मैं...
हर एक तारें में दिख रही है हमारी जिंदगी....
पत्थरों की प्यास में झलकती है हमारी जिंदगी....
हर दीवार के जर्रे में है एक जिंदगी....
एक राह पर दौड़ रही है दो जिंदगी.....
फिर भी सोचने को मजबूर है हमारी जिंदगी...
फिर भी रटते रहते हैं हम...
जिंदगी जिंदगी जिंदगी....
हमारी जिंदगी, तुम्हारी जिंदगी...
-- रजनीश कुमार