Wednesday, October 3, 2012

काश....काश


Rajnish 'Baba' Mehta  'काश'

काश...काश इतना भारी ना होता 


काश कहना भारी सा लगता है ना
उस रोज भी वजन का बोझ लिए 
उनके काश कहने पर रूका था 
सुकून के समंदर से निकलकर 
यूं ही उनके बाहों में समाने का मन था
फिर क्या हुआ...वो काश की कहानी ?
रोज-रोज कोसता हूं उस काश को
सोचता हूं काश...उसके काश कहने पर रूका ना होता
काश मेरे थिरकते कदम बोझिल ना होते
अब क्या फायदा.
क्यों कोस रहा हूं अपनी जिंदगी को
अब तो बस काश ही बचा है जीने का आखिरी रास्ता