Wednesday, December 21, 2016

खुद की खोज़ में बाबा




रात का रण हो 
या सूर्य का कण हो ।।
सांसों में समाया हो 
या सदियों में जमाया हो।।

ना तू रोक पाया 
ना तू रक़ीब बन पाया,
तू राख था
मैं पत्थर सा पड़ा,
तू सोच था मैं शब्द सा अड़ा
अब चल अचल की ओर
क्योंकि तू बेड़ी सा पड़ा
मैं जंजीर सा लिपटा रहा ।।




कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

Sunday, November 20, 2016

सिसकियां





















दु: गया दिल , उबल पड़े चंद शेर 
आंसूओं में बह गया, वो सिसकियों का ढ़ेर ।।
डूबने नहीं, उगने वाला था सुबह का वो सिकंदर
साहिल पे था, मौत के चेहरों का वो हुजूम--मंजर ।।

ना मिली पल की मोहलत, जो आंख भरकर देख पाता 
छुपते-छुपाते सन्नाटें में जो शोर मचाती आई ।।
नींद की आगोश में, करवटों के किनारे, सपनों के सहारे 
शब--मर्ग बाद, पौ तो फटी मगर जिंदगी ना नजर आई ।।

रक्खा था ज़मीनों पर कई कशीदा-सर 
चाहकर भी देख ना पाया वो हुजूम--मंजर।।
रूह-रूह में जो इस तरह वो पेवस्त हुई 
राख सा जिस्म थर्राया नहीं ध्वस्त हुई ।।

तोड़कर आईना--ज़िदंगी जो तू मौत कर गया 
रेल की सीटी सी गुनगुनाकर जो तू हममें घर कर गया 
 तलाश लेना तू वो बिस्तर जिसपर तेरी नींद मुकम्मल हो 
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क्योंकि तेरी सिसकियां हमें पूरा पत्थर कर गया ।।

                     कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 



शब-ए-मर्ग -रात का आखिरी पहर, कशीदा-सर -खुला सर 

















Wednesday, November 9, 2016

किस्सागोई बाबा की

रजनीश बाबा मेहता Rajnish baba mehta Fillum 
खुद की बंदगी 
दिल की दिल्लगी 
राहों की बेपनाहगी 
सांसों में संजीदगी 
सोच में सादगी 
जिस्म में अदायगी 
शौक में दीवानगी 

ऐसी ही शख्सियत सिनेमा की 
ऐसी है किस्सागोई बाबा की 

सपनों की राह का राहगीर सा होगा 

मेरे राहों का वो ख्वाबगीर सा होगा ।।

                 कातिब 
         रजनीश बाबा मेहता 

Wednesday, November 2, 2016

इंतजार (विधा- चौरंगा)


Rajnish BaBa Mehta Peom Chauranga style 

सोखती शाख़ों पर सूखे पत्ते 
संदूकों में बंद रिश्तों के प्याले
जड़ ढ़ूढ़ती जोश में काले मुर्दे
स्याह सी लगती है जीवन के ये सारे परदे ।।
ढ़ोल सी बजती तो ढम से आती आवाज़ें
रेल की सीटी सी गूँजती वो सन्नाटें
बिस्तरों पर टूटती उनकी वो कराहें
प्यास लगती तो गूँजती मयखानों में वो आहें ।।
सुबह ढ़ूढ़ती शामों में आसरों के रास्ते
दूर खड़ी पगडंडी पर चलती वो मेरे वास्ते
पहरों की क़ब्र में कैद होकर ख़ूब बरसते
सोच की संसार में खुद से लड़ती वो मिलने को तरसते ।।
अब काग़ज़ के छोटे नावों से बचा है आसरा
गलियों में ना जाने किस बात का सन्नाटा है पसरा
लंबे वक़्त के बाद लगता है पुरी होगी लंबी ख़्वाहिश
लो आ गई झरोखों से आख़िरी वक़्त की ख़्वाहिश
चाह कर भी कोई चाह ही पाया
हिम्मत करते भी कोई हिम्मत नहीं कर पाया
क्योंकि जड़ में जड़ गई वो काले मुर्दे
अब भी स्याह सी लगती है जीवन के ये सारे परदे ।।            

                कातिब 
         रजनीश बाबा मेहता 

Sunday, September 18, 2016

वेद में लिपटा बाबा

वेद में लिपटा बाबा - रजनीश बाबा मेहता 
लिखना बगावत है


मैं वाह, प्रवाह, वेग, व्यास, वेद में लिपटा हूं,
तू बन बेड़ी , मैं जंजीर बन के लिपटा हूं । 
सुबह की सूरज सी धूप सा सहमा हूं,
चंदा की रोशनी सी रात में सिमटा हूं ।।
जख्म दिया जो तूने पीठ पे 
मरहम की आस में खुद से लिपटा हूं ।।
आज पलकों भर आंसू से रोया हूं 
तू क्या जाने आज ख्वाब को किस कदर खोया हूं ।।

यादें संभाल कर रखूंगा इस दिल में 
मरहूम सा दुबक कर ना सोउंगा मैं बिल में ।।
ख्वाब-ए-इश्क को फना भी मैं ही करूंगा 
खुदा का मैं नेक बंदा फैसला भी मैं ही करूंगा।
जुबान बंद कर जो दर्द पिया वो तर्जुबा हुआ 
ख्वाहिश की मंजिल तक जो मैं पहुंचा वो भी तर्जुबा हुआ ।।
मेरी किस्मत भी नाज करती है मुझपे 
हर नजर को निगाह-ए-हक है मुझपे  ।।
अब पहुंचा हूं जो तारीख पर 
हैरान रह जाओगे मेरा मुकाम देखकर ।।

अच्छा हुआ बिखरे जमाने कब के गुजर गए 
लगी जोर की ठोकर जो हम बच गए ,
बंधे थे खुद की ख्वाहिश-ए-ख्वाबगीर में
बरना कबके हम भी बिखर गए होते ।।
शुक्रिया तेरा है जो तूने खुद ही खुद का सोचा 
वरना आज भी हम हीरा नहीं 
तपती रेत में पत्थर की तरह बिखर गए होते । 

             कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 
आज दिल में कुछ रोष है और व्यक्त करने का माध्यम इससे बेहतर कुछ भी नहीं हो सकता ।




   

Monday, September 5, 2016

अनकही कहानी रीत सी



एक रीत सी है, एक प्रीत सी है ।  
अनकही कहानी रीत सी _ रजनीश बाबा मेहता 
वो गीत सी है, वो शाम की सुबह सी है।।
अँगड़ाईयों में अश्कों सी है
वो अज़ीम अफ़साना अब्त़र है ।।
शाख़ ए जिस्म में पेवस्त सी है
वो सुर्ख़ ज़ख़्म में नस्तर सी है ।।
रेंग रेंग चलती पर्वतों पर पत्थर सी है ,
टूटे आहटों के सायों का चलना बदस्तर है ।।
फ़िरदौस की फ़ांका में बाबा, फ़रिश्तों से मिल आया
किताब के कोरे पन्नों पर, तेरे लिए पूरा नज़्म लिख आय़ा ।
अब तक हर राह रूमानी थी, हर ख़्वाब बेमानी थी,
अब तो तेरा रिश्ता , बिस्तर के कोनों के जैसी ज़िस्मानी थी।।
वो रात की पूरी बारिश रूह सी रूहानी थी
खुली आँखों से लगती वो एक अनकही कहानी थी ।।

                                      कातिब 
                              रजनीश बाबा मेहता

अज़ीम- महान, अफ़साना- कहानी अब्त़र - नष्ट, बिखरा हुआ, फ़िरदौस- स्वर्ग, फ़ांका- भूखा,


Thursday, August 11, 2016

महाश्वेता देवी

Mahasweta devi ko Rajnish baba mehta ka naman
 महाश्वेता देवी


तू नहीं तेरी सौगात मेरे ज़ेहन में जिंदा रहेगी 
तू है अब अग्निगर्भ में, मनीष-धारित्रि पुत्री रहेगी ।।
मौत के उम्रकैद में, कृष्ण द्वादशी के देश में 
मातृछवि की छांव में, अमृत संचय लिए तू जिंदा रहेगी ।।
क्लांत कौरव के काल में, अग्निशिखा की गाल में 
बनिया बहू की बाल में, मास्टर साब के शाल में , 
तू जिंदा रहेगी स्याही सी कलम की हर खाल में ।।
उपदेश सी तू, बनके क्यूं चली गई 
अनंत काल तक राह सी क्यूं चली गई ।।
हर शब्द सी लोरी सुनता रहूंगा 
हजार चौरासी की मां तुझे याद करता रहूंगा ।।

  कातिब 
रजनीश बाबा मेहता 

      

Monday, April 25, 2016

संघर्ष के दिन

Rajnish BaBa Mehta @Struggling Days in Mumbai
 उदासी थी रास्तों में,
 रिश्तों की परवाह नहीं की उसने ।
मांगा था एक पल दुआओं में,
इबादत की परवाह नहीं की उसने ।।

खुद की सोच को समेटकर दे दिया लम्हों में,  
इंसान होकर भी इंसानियत की परवाह नहीं की उसने ।

वक्त को बंद डब्बे में रखकर भूल आया , 
फिर भी मेरी सोच को शीशे सा पिघला दिया उसने । 

हार नहीं हिम्मत है ये मेरी,  
क्योंकि मेरे जैसा, जर्रे से मोती बनना, 
सीखा नहीं उसने ।।
                    कातिब 
            रजनीश बाबा मेहता 

Wednesday, April 6, 2016

मस्तानों सा रेत सा अकेला ।

Rajnish BaBa Mehta
मस्तानों सा रेत सा अकेला ।

रिश्तों में आई दरार ने ,
हमें रास्तों पर ला दिया ।
ख्वाहिश थी एक जुम्बिश की,
हवाओं ने बयार ला दिया ।।
सांसों की उलझनों से,
जो सुलझाया था सिलवटों को ।
नंगे कदमों की आहट ने,
जिस्म में गुबार ला दिया ।।

पहचान बनाने में ज़िद में ,
ज़िंदगी उलझती चली गई ।
सुलझा हुआ इश्काना ,
नम आंखों में उलझती चली गई।।
मस्तानों की दुनिया में,
रह गया रेत सा अकेला ।।
झुरझुरी लिए जिस्म में,
जीना होगा अकेला ।।
          कातिब 
  रजनीश बाबा मेहता
 फिiLLuM
rajnish-e-rajnish.blogspot.com