Monday, April 25, 2016

संघर्ष के दिन

Rajnish BaBa Mehta @Struggling Days in Mumbai
 उदासी थी रास्तों में,
 रिश्तों की परवाह नहीं की उसने ।
मांगा था एक पल दुआओं में,
इबादत की परवाह नहीं की उसने ।।

खुद की सोच को समेटकर दे दिया लम्हों में,  
इंसान होकर भी इंसानियत की परवाह नहीं की उसने ।

वक्त को बंद डब्बे में रखकर भूल आया , 
फिर भी मेरी सोच को शीशे सा पिघला दिया उसने । 

हार नहीं हिम्मत है ये मेरी,  
क्योंकि मेरे जैसा, जर्रे से मोती बनना, 
सीखा नहीं उसने ।।
                    कातिब 
            रजनीश बाबा मेहता 

Wednesday, April 6, 2016

मस्तानों सा रेत सा अकेला ।

Rajnish BaBa Mehta
मस्तानों सा रेत सा अकेला ।

रिश्तों में आई दरार ने ,
हमें रास्तों पर ला दिया ।
ख्वाहिश थी एक जुम्बिश की,
हवाओं ने बयार ला दिया ।।
सांसों की उलझनों से,
जो सुलझाया था सिलवटों को ।
नंगे कदमों की आहट ने,
जिस्म में गुबार ला दिया ।।

पहचान बनाने में ज़िद में ,
ज़िंदगी उलझती चली गई ।
सुलझा हुआ इश्काना ,
नम आंखों में उलझती चली गई।।
मस्तानों की दुनिया में,
रह गया रेत सा अकेला ।।
झुरझुरी लिए जिस्म में,
जीना होगा अकेला ।।
          कातिब 
  रजनीश बाबा मेहता
 फिiLLuM
rajnish-e-rajnish.blogspot.com