Wednesday, August 30, 2017

।।वो आंगन अच्छा नहीं, जिस आंगन बच्चा नहीं।।

writer , Director Rajnish baba mehta
गोरखपुर में बच्चों की मौत पर हृदय वेदना से भर गया
मैं किसी को समझा नहीं सकता ना किसी को रोक सकता हूं 
बस शब्दों के जरिए व्यक्त जरूर कर सकता हूं 



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शहर--ख़ाक निकला है गलियों के गोशे से 
देखो जरा राख निकला है जिस्मों के पेशे से 
निगाह--नाज जो पहली मिली फरिश्तों के मेले से 
तू बचा ना पाया नन्हें कदमों को मौत--महफिल से
हवाओं की बंदिश पर जो झुलसता रहा रूकती सांसों से।।

कहां गया तू मेरा बचपन खराब करके, हमारी मौत उधार लेके
कब्र के कोनों से सुना था,आया तू मातम मनाने वो भी खुशियां खरीदके।
मिट्टी के खिलौने सा ख्वाब तराशा है तूने, वो भी इंसा को गिरवी रखके 
लिया है शाप तूने दीवारों की खातिर, अब गिरेगी साख तेरी वो भी राख बनके ।।   

 पूछ लेना खुद कभी अपने आंगन में बड़े-बूढ़ों के सिराहने से 
लफ्ज ना आएगी, बस एहसास की आखिरी आवाज होगी उसकी रूह से
 कि 
कोई दर कभी अच्छा ना होगा , ना कोई आंगन सच्चा होगा
अगर दहलीज पर खेलने वाला कोई मासूम बच्चा ना होगा ।।


।।गोशे- - कोना।।

कातिब

रजनीश बाबा मेहता 

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